पढ़िए बसंत पंचमी पर कविता छोटी सी हिंदी में | Basant Panchami par Kavita Hindi

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बसंत पंचमी पर कविता | Basant Panchami Poem in Hindi

दोस्तों आज हम पढ़ेंगे बसंत पंचमी पर कविताएं बसंत पंचमी में लिखी गई कविताएं बसंत ऋतु पर कविताएं।

Basant Panchami : दोस्तों इस बार बसंत पंचमी के मौके पर हम आपके लिए लेकर आए हैं बसंत पंचमी की सुंदर सुंदर कविता है यह कविताएं बहुत अच्छी हैं और इंटरनेट से आपके लिए एक हड्डी की गई हैं इन कविताओं को आप कॉपी पेस्ट करके अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भेज सकते हैं या आप चाहें तो बसंत पंचमी के मौके पर इन कविताओं को याद करके अपने स्कूल और कॉलेज के कार्यक्रम में प्रस्तुति दे सकते हैं यह कविताएं बहुत ही अच्छी हैं और अच्छे-अच्छे कवियों द्वारा लिखी गई है इन कविताओं में बसंत पंचमी के मनमोहक अंदाज और बसंत ऋतु के आगमन का वर्णन बहुत ही अच्छी तरह किया गया है वसंत को ऋतुराज बसंत कहा जाता है इसी प्यार का महीना भी कहा जाता है इसीलिए पूरे साल में बसंत पंचमी को महत्व दिया जाता है।

बसंत पंचमी पर कविता | Basant Panchami par Kavita Hindi
बसंत पंचमी पर

Basant Panchami Kavita in Hindi

1- अंग-अंग में उमंग आज तो पिया, 

बसंत आ गया! दूर खेत मुसकरा रहे हरे-हरे, 

डोलती बयार नव-सुगंध को धरे, 

गा रहे विहग नवीन भावना भरे, 

प्राण! आज तो विशुद्ध भाव प्यार का हृदय समा गया! अंग-अंग में उमंग आज तो पिया, 

बसंत आ गया! खिल गया अनेक फूल-पात से चमन, 

झूम-झूम मौन गीत गा रहा गगन, 

यह लजा रही उषा कि पर्व है मिलन, 

आ गया समय बहार का, 

विहार का नया नया नया! 

अंग-अंग में उमंग आज तो पिया, 

बसंत आ गया!


2- रंग-बिरंगी खिली-अधखिली

किसिम-किसिम की गंधों-स्वादों वाली ये मंजरियां

तरुण आम की डाल-डाल टहनी-टहनी पर

झूम रही हैं…

चूम रही हैं–

कुसुमाकर को! ऋतुओं के राजाधिराज को !!

इनकी इठलाहट अर्पित है छुई-मुई की लोच-लाज को !!

तरुण आम की ये मंजरियाँ…

उद्धित जग की ये किन्नरियाँ

अपने ही कोमल-कच्चे वृन्तों की मनहर सन्धि भंगिमा

अनुपल इनमें भरती जाती

ललित लास्य की लोल लहरियाँ !!

तरुण आम की ये मंजरियाँ !!

रंग-बिरंगी खिली-अधखिली…


3- सब का हृदय खिल-खिल जाए,

मस्ती में सब गाए गीत मल्हार।

नाचे गाए सब मन बहलाए,

जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।

खिलकर फूल गुलाब यूँ इठलाए,

चारों ओर मंद-मंद खुशबू फैलाए।

प्रकृति भी नए-नए रूप दिखाएं,

जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।

सूरज की लाली सबको भाए,

देख बसंत वृक्ष भी शाखा लहराए।

खुला नीला आसमां सबके मन को हर्षाये,

जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।

नई उमंग लेकर नदियां भी बहती जाए,

चारों ओर हरियाली ही हरियाली छाए।

शीत ऋतु भी छूमंतर हो जाए,

जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं।।

– नरेंद्र वर्मा

4- रंग बिरंगी फूलों की खिलती पंखुड़ियां,

पेड़ों पर नई फूटती कोपले।

पंख फैलाए उड़ते पंछी,

हो रहा है बसंत का आगमन।।

भोर होते ही निकला है सूरज,

भंवरे भी फूलों पर मंडराए।

मधु ने भी फूलों का रसपान किया,

हो रहा है बसंत का आगमन।।

कोयल ने नई कुक बजाई,

मोर ने दिखाया नाच अनोखा।

नीले आसमां पर पंख खोलकर बाज मंडरायाई 

हो रहा है बसंत का आगमन।।

खेतों में पीली चादर लहराई,

सबके घर में खुशियां भर भर के आयी।

जो सबके दिल को भायी,

वही बसंत ऋतु कहलायी।।

– नरेंद्र वर्मा


5- ख़त्म हुयी सब बात पुरानी

होगी शुरू अब नयी कहानी

बहार है लेकर बसंत आई

चढ़ी ऋतुओं को नयी जवानी

गौरैया है चहक रही

कलियाँ देखो खिलने लगी हैं,

मीठी-मीठी धूप जो निकले

बदन को प्यारी लगने लगी है,

तारे चमकें अब रातों को

कोहरे ने ले ली है विदाई

पीली-पीली सरसों से भी

खुशबु भीनी-भीनी आई

रंग बिरंगे फूल खिले हैं

कितने प्यारे बागों में

आनंद बहुत ही मिलता है

इस मौसम के रागों में

आम नहीं ये ऋतु है कोई

ये तो है ऋतुओं की रानी

एक वर्ष की सब ऋतुओं में

होती है ये बहुत सुहानी

ख़त्म हुयी सब बात पुरानी

होगी शुरू अब नयी कहानी

बहार है लेकर बसंत आई

चढ़ी ऋतुओं को नयी जवानी,


Part 2

Short Poem on Basant Panchami in Hindi

1- देखो -देखो बसंत ऋतु है आयी। 

अपने साथ खेतों में हरियाली लायी॥ 

किसानों के मन में हैं खुशियाँ छाई। 

घर-घर में हैं हरियाली छाई॥ 

हरियाली बसंत ऋतु में आती है। 

गर्मी में हरियाली चली जाती है॥ 

हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है। 

यही चक्र चलता रहता है॥ 

नहीं किसी को नुकसान होता है। 

देखो बसंत ऋतु है आयी ॥


2- आओ, आओ फिर, मेरे बसन्त की परी–

छवि-विभावरी;

सिहरो, स्वर से भर भर, अम्बर की सुन्दरी-

छबि-विभावरी;

बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग,

तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग,

पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग,

शीतल-मुख मेरे तट की निस्तल निझरी–

छबि-विभावरी 

– निराला की कविता


3- उस फैली हरियाली में,

कौन अकेली खेल रही मा!

वह अपनी वय-बाली में?

सजा हृदय की थाली में–

क्रीड़ा, कौतूहल, कोमलता,

मोद, मधुरिमा, हास, विलास,

लीला, विस्मय, अस्फुटता, भय,

स्नेह, पुलक, सुख, सरल-हुलास!

– सुमित्रानंदन पंत की कविता


4- चलो मिल बटोर लाएँ 

मौसम से वसंत 

फिर मिल कर समय गुज़ारें 

पीले फूलों सूर्योदय की परछाई 

हवा की पदचापों में 

चिडियों की चहचहाहटों के साथ 

फागुनी संगीत में फिर 

तितलियों से रंग और शब्द लेकर 

हम गति बुनें 

चलो मिल कर बटोर लाएँ 

मौसम से वसंत 

और देखें दुबकी धूप 

कैसे खिलते गुलाबों के ऊपर 

पसर कर रोशनियों की 

तस्वीरें उकेरती है 

उन्हीं उकेरी तस्वीरों से 

ओस कण चुने 

चलो मिल बटोर लाएं।

Basant Panchami Poems in Hindi

1- मन में हरियाली सी आई,

फूलों ने जब गंध उड़ाई।

भागी ठंडी देर सवेर,

अब ऋतू बसंत है आई।।

कोयल गाती कुहू कुहू,

भंवरे करते हैं गुंजार।

रंग बिरंगी रंगों वाली,

तितलियों की मौज बहार।।

बाग़ में है चिड़ियों का शोर,

नाच रहा जंगल में मोर।

नाचे गायें जितना पर,

दिल मांगे ‘Once More’।।

होंठों पर मुस्कान सजाकर,

मस्ती में रस प्रेम का घोले।

‘दीप’ बसंत सीखाता हमको,

न किसी से कड़वा बोलें।।


2- बसंत ऋतू आयी है,

रिश्तो में मिठास है।

खेतों में बहार है,

किसानों के मुख पर मुस्कान है।।

खुला नीला आसमान है,

बह रही है शीतल हवा।

सबका मन प्रसन्न है,

यही बसंत पंचमी का त्यौहार है।।

डाल-डाल पर बैठकर,

पंछी नए गीत गा रहे है।

खिल रहे है फूल रंग बिरंगे,

जैसे हो रहा हो धरती का नया जन्म।।

आशाओं को नई उम्मीद लगी है,

पेड़ो ने भी बाह फैला कर स्वागत किया है।

सर्दी हो गयी ना जाने कहा गुम,

अब सुहावना मौसम आया है,

अब बसंत ऋतू आयी है।।

– नरेंद्र वर्मा


3- आओ, आओ फिर, मेरे बसन्त की परी–

छवि-विभावरी,

सिहरो, स्वर से भर भर, अम्बर की सुन्दरी-

छवि-विभावरी।

बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग,

तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग,

पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग,

शीतल-मुख मेरे तट की निस्तल निझरी–

छवि-विभावरी।

निर्जन ज्योत्स्नाचुम्बित वन सघन,

सहज समीरण, कली निरावरण

आलिंगन दे उभार दे मन,

तिरे नृत्य करती मेरी छोटी सी तरी–

छवि-विभावरी।

आई है फिर मेरी ’बेला’ की वह बेला

’जुही की कली’ की प्रियतम से परिणय-हेला,

तुमसे मेरी निर्जन बातें–सुमिलन मेला,

कितने भावों से हर जब हो मन पर विहरी–

छवि-विभावरी।

– सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”


4- शीत ऋतु का देखो ये

कैसा सुनहरा अंत हुआ

हरियाली का मौसम है आया

अब तो आरंभ बसंत हुआ,

आसमान में खेल चल रहा

देखो कितने रंगों का

कितना मनोरम दृश्य बना है

उड़ती हुयी पतंगों का,

महके पीली सरसों खेतों में

आमों पर बौर हैं आये

दूर कहीं बागों में कोयल

कूह-कूह कर गाये,

चमक रहा सूरज है नभ में

मधुर पवन भी बहती है

हर अंत नयी शुरुआत है

हमसे ऋतु बसंत ये कहती है,

नयी-नयी आशाओं ने है

आकर हमारे मन को छुआ

उड़ गए सारे संशय मन के

उड़ा है जैसे धुंध का धुंआ,

शीत ऋतु का देखो ये

कैसा सुनहरा अंत हुआ

हरियाली का मौसम आया

अब तो आरम्भ बसंत हुआ।

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हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सरस्वती माता के बिना दुनिया अज्ञानता में डूब जाएगी, क्योंकि वह आत्मज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसलिए इस दिन सरसों की फसल के पीले फूलों से खेतों के पकने का जश्न मनाने के साथ-साथ सरस्वती माता की पूजा की जाती है।

दोस्तों कैसी लगी आपको बसंत पंचमी की ये कविताएं हमें कमेंट में जरूर बताइएगा और यदि आपको भी बसंत पंचमी की कोई अच्छी सी कविता आती है उसे भी कमेंट में जरूर लिखिएगा।

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