क्यों और कैसे की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा | Murti ki pran Pratishtha vidhi in Hindi

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मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है | Murti ki pran Pratishtha vidhi in Hindi

मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा एक धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें देवता की मूर्ति में प्राण का प्रवेश कराया जाता है। यह अनुष्ठान हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राण प्रतिष्ठा के बिना, मूर्ति को देवता का निवास स्थान नहीं माना जाता है और इसकी पूजा नहीं की जा सकती है।

मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है | Murti ki pran Pratishtha vidhi in Hindi

मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का आधार शास्त्रों और पौराणिक ग्रंथों पर होता है। इस प्रक्रिया में पुराणों या धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मंत्रों का पाठ किया जाता है और प्रतिष्ठापन में अनुष्ठान किया जाता है। धार्मिक आचार्य या पंडित इस प्रक्रिया का मार्गदर्शन करते हैं और श्रद्धालुओं को सही तरीके से इसे सम्पन्न करने के लिए प्रेरित करते हैं।

प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया निम्नलिखित है: मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है आइए जानते हैं 

शुद्धिकरण: अनुष्ठान की शुरुआत मूर्ति और मंदिर की शुद्धि से होती है। इसके लिए मूर्ति को स्नान कराया जाता है और मंदिर को गंगाजल या अन्य पवित्र जल से शुद्ध किया जाता है। 

अभिषेक: मूर्ति को अभिषेक किया जाता है, जिसका अर्थ है कि उसे पवित्र जल से नहलाना। अभिषेक के लिए दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का उपयोग किया जाता है। 

साज-सज्जा: मूर्ति को सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है।

पूजा: मूर्ति की विधिवत पूजा की जाती है। पूजा में मंत्रों का जाप, आरती और भजन गायन किया जाता है। 

प्राण प्रतिष्ठा: प्राण प्रतिष्ठा का मुख्य अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान में, पुजारी मंत्रों का जाप करके मूर्ति में प्राण का प्रवेश कराता है। 

प्राण प्रतिष्ठा के बाद, मूर्ति को देवता का निवास स्थान माना जाता है और इसकी पूजा की जाती है।

प्राण प्रतिष्ठा के लिए कई अलग-अलग विधियां हैं। इन विधियों में कुछ अंतर हो सकते हैं, लेकिन मूल प्रक्रिया समान होती है। 

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