Supreme Court Aravalli Ruling: क्या भारत की सबसे पुरानी पर्वतमाला खत्म हो रही है?
भारत की जलवायु, पानी और पर्यावरण की रीढ़ मानी जाने वाली Aravalli Range आज एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद यह सवाल हर किसी के मन में है — क्या अरावली पर्वतमाला धीरे-धीरे अपने अस्तित्व की लड़ाई हार रही है?
अरावली पर्वतमाला क्या है और कहाँ स्थित है?
अरावली पर्वत माला दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है, जिसकी आयु लगभग 2 अरब वर्ष मानी जाती है। यह पर्वतमाला दिल्ली से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान होते हुए गुजरात तक लगभग 650–700 किलोमीटर में फैली हुई है।
Aravalli Range केवल पहाड़ों की एक श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह उत्तर-पश्चिम भारत के पर्यावरणीय संतुलन की एक मजबूत दीवार है।
भारत की जलवायु में अरावली का महत्व
अरावली पर्वतमाला उत्तर भारत की जलवायु को संतुलित करने में बड़ी भूमिका निभाती है। यह थार मरुस्थल को पूर्व और उत्तर की ओर फैलने से रोकती है और गर्म, धूल भरी हवाओं को दिल्ली और गंगा के मैदानी इलाकों तक पहुँचने से नियंत्रित करती है।
अगर अरावली कमजोर होती है, तो तापमान में तेजी से बढ़ोतरी, हीटवेव और प्रदूषण उत्तर भारत के लिए आम बात बन सकती है।
नदी, नाले और भूजल: अरावली की अदृश्य ताकत
अरावली पर्वत माला कई महत्वपूर्ण नदियों और जल स्रोतों को जीवन देती है। बाणास, लूणी और साबरमती जैसी नदियाँ इसी क्षेत्र से प्रभावित होती हैं।
अरावली की चट्टानी संरचना वर्षा के पानी को धीरे-धीरे ज़मीन में उतारती है, जिससे भूजल recharge होता है और कुएँ, बावड़ियाँ व नाले जीवित रहते हैं।
पेड़, जंगल और जैव विविधता
अरावली क्षेत्र में पाए जाने वाले नीम, खेजड़ी, बबूल और ढोक जैसे पेड़ न केवल ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि मिट्टी को बाँधकर कटाव रोकते हैं।
यह क्षेत्र तेंदुए, हिरण, पक्षियों और कई दुर्लभ जीवों का घर है। अरावली का हर पेड़ कार्बन को सोखकर जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को धीमा करता है।
लोगों के जीवन में अरावली की भूमिका
अरावली पहाड़ियों पर और आसपास रहने वाले लोग खेती, पशुपालन और वनोपज पर निर्भर हैं। पानी, छाया, औषधीय पौधे और स्थिर मौसम — यह सब अरावली की देन है।
अरावली का विनाश सीधे तौर पर ग्रामीण जीवन और आजीविका पर हमला है।
Supreme Court का फैसला और बढ़ता खतरा
हालिया सुप्रीम कोर्ट निर्णय में अरावली की एक नई कानूनी परिभाषा स्वीकार की गई, जिसमें केवल 100 मीटर से ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों को अरावली माना गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बड़े इलाके संरक्षण से बाहर हो सकते हैं, जिससे खनन, पेड़ों की कटाई और जल संकट का खतरा बढ़ेगा।
गोवर्धन पर्वत की कहानी और आज का संदेश
हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा हमें सिखाती है कि पर्वत केवल पत्थर नहीं होते, वे जीवन की रक्षा करने वाले रक्षक होते हैं।
जैसे गोवर्धन पर्वत ने लोगों को संकट से बचाया, वैसे ही अरावली आज भी करोड़ों लोगों को जलवायु और जल संकट से बचा रही है।
निष्कर्ष: अरावली को बचाना भविष्य को बचाना है
अरावली पर्वतमाला का संरक्षण केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व का सवाल है।
यदि आज अरावली कमजोर हुई, तो कल भारत की जलवायु, पानी और जीवन सभी संकट में होंगे।
