गणतंत्र दिवस पर कविता | 26 जनवरी के लिए कविता | Republic Day Poem in Hindi for 26 January

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गणतंत्र दिवस पर कविता | 26 जनवरी के लिए कविता | Republic Day Poem in Hindi for 26 January

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गणतंत्र दिवस पर कविता | Republic Day Poem in Hindi for 26 January

गणतंत्र दिवस पर कविता | 26 जनवरी के लिए कविता | Republic Day Poem in Hindi for 26 January
गणतंत्र दिवस पर कविता | 26 जनवरी के लिए कविता | Republic Day Poem 
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कोशिश कर हल निकलेगा,

आज नहीं तो कल निकलगा।

कोशिश कर हल निकलेगा,

आज नही तो कल निकलेगा,

अर्जुन सा लक्ष्य रख निशाना लगा,

मरुस्थल से भी फिर जल निकलेगा,

मेहनत कर पौधों को पानी दे,

बंजर में भी फिर फल निकलेगा,

ताक़त जुटा, हिम्मत को आग दे,

फौलाद का भी बल निकलेगा,

सीने में उम्मीदों को ज़िंदा रख,

समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा,

कोशिशें जारी रख कुछ कर ग़ुज़रने की,

जो कुछ थमा-थमा है चल निकलेगा,

कोशिश कर हल निकलेगा,

आज नहीं तो कल निकलगा।

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26 January Poem in Hindi

देश हमारा सबसे प्यारा,

बच्चों इसे प्रणाम करो।

देश हमारा सबसे प्यारा,

बच्चों इसे प्रणाम करो,

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,

साथ यहाँ सब रहते हैं,

सुख-दुःख जो भी इनको मिलते,

सारे मिल कर सहते हैं,

सबने मिलकर ठान लिया हैं,

भारत का यशमान मान करो,

बच्चों इसे प्रणाम करो।

होली, दिवाली, क्रिसमस सब त्यौहार हम मनाते हैं,

और ईद के अवसर पर हम सबको गले लगाते हैं,

यह भारत की परंपरा है,

इसका तुम सम्मान करो,

बच्चों इसे प्रणाम करो,

मानवता की रक्षा करते,

मानव धर्म निभाते हैं,

ठुकराया हो जिसको जग ने,

हम उसको अपनाते हैं,

ऐसा भारत अपना भारत,

इसका तुम गुणगान करो,

बच्चों इसे प्रणाम करो,

देश हमारा सबसे प्यारा,

बच्चों इसे प्रणाम करो।

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गणतंत्र दिवस का है अवसर,

हिस्सा लें इसमें बढ़ चढ़ कर,

निकाल के अपने सारे डर,

बढ़ते चले जीवन पथ पर,

इस पावन दिन ये ध्यान करें,

संविधान का सब सम्मान करें,

इतने सारे अधिकार जो दे,

सदा समर्पित उसको प्राण करें,

संविधान ने हर अधिकार दिया,

सबका सपना साकार किया,

शोषित वर्षों से था भारत,

उसको एक नया आकार दिया,

लोगों के मन में ना हो भय,

इसलिए सरकार की सिमा तय,

अधिकारों से जो वंचित हैं,

जा सकता है वो न्यायालय,

पुरखों ने पुख्ता काम किया,

संविधान हमारे नाम किया,

चर्चा हर एक धारा पर,

सुबह से लेकर शाम किया,

देश की ऊँची शान करें,

तिरंगे का गुणगान करें,

राष्ट्र हित में जो अनिवार्य,

बिना कहे योगदान करें।

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गणतंत्र दिवस पर कविताएं 

गणतंत्र दिवस पर कविता | 26 जनवरी के लिए कविता | Republic Day Poem in Hindi for 26 January

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बंधाए,

कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,

इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,

और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गंवाए!

किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।


जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,

जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,

जिसने आजादी लेने की एक निराली राह निकाली,

और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,

घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,

'जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।'

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

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कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,

कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,

गैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,

किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,

बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गांठें लग जातीं,

बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।


कटीं बेड़ियां औ' हथकड़ियां, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,

किंतु यहां पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पांव बढ़ाओ,

आजादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,

उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।

हल्का फूल नहीं आजादी, वह है भारी जिम्मेदारी,

उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

हरिवंश राय बच्चन

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चिश्ती ने जिस जमीं पे पैगामे हक सुनाया

नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया

तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया

जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।


सारे जहां को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,

यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था

मिट्टी को जिसकी हक ने जर का असर दिया था

तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है

टूटे थे जो सितारे फारस के आसमां से

फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से

बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से

मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहां से

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।

- इकबाल

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कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,

आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से

तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरखे का,

चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे

परवाह नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की,


है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे

उफ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे

तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका

चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं

खूं से ही हम शहीदों के, फौज बना देंगे

मुसाफिर जो अंडमान के, तूने बनाए, जालिम

आजाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे

-अशफाकउल्ला खां

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इलाही खैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,

हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फरियाद करते हैं

कभी आजाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं

मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं

असीराने-कफस से काश, यह सैयाद कह देता

रहो आजाद होकर, हम तुम्हें आजाद करते हैं

रहा करता है अहले-गम को क्या-क्या इंतजार इसका

कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कैदे-उल्फत में

वो अब आजाद करते हैं, वो अब आजाद करते हैं


सितम ऐसा नहीं देखा, जफा ऐसी नहीं देखी,

वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फरियाद करते हैं

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते

हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मकतल में हमें 'बिस्मिल'

तो हम डरकर दबी आवाज से फरियाद करते हैं।।

- राम प्रसाद बिस्मिल

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देखो फिर से गणतंत्र दिवस आ गया,

जो आते ही हमारे दिलो-दिमाग पर छा गया।

यह है हमारे देश का राष्ट्रीय त्यौहार,

इसलिए तो सब करते हैं इससे प्यार।

इस अवसर का हमें रहता विशेष इंतजार,

क्योंकि इस दिन मिला हमें गणतंत्र का उपहार।

आओ लोगों तक गणतंत्र दिवस का संदेश पहुचाएं,

लोगों को गणतंत्र का महत्व समझाएं।

गणतंत्र द्वारा भारत में हुआ नया सवेरा,

इसके पहले तक था देश में तानाशाही का अंधेरा।

क्योंकि बिना गणतंत्र देश में आ जाती है तानाशाही,

नहीं मिलता कोई अधिकार वादे होते हैं हवा-हवाई।

तो आओ अब इसका और ना करें इंतजार,

साथ मिलकर मनाये गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय त्यौहार।।

*****

'आओ तिरंगा फहराये'

आओ तिरंगा लहराये, आओ तिरंगा फहराये,

अपना गणतंत्र दिवस है आया, झूमे, नाचे, खुशी मनाये।

अपना 73वां गणतंत्र दिवस खुशी से मनायेंगे,

देश पर कुर्बान हुए शहीदों पर श्रद्धा सुमन चढ़ायेंगे।

26 जनवरी 1950 को अपना गणतंत्र लागू हुआ था,

भारत के पहले राष्ट्रपति, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने झंडा फहराया था,

मुख्य अतिथि के रुप में सुकारनो को बुलाया था,

थे जो इंडोनेशियन राष्ट्रपति, भारत के भी थे हितैषी,

था वो ऐतिहासिक पल हमारा, जिससे गौरवान्वित था भारत सारा।

विश्व के सबसे बड़े संविधान का खिताब हमने पाया है,

पूरे विश्व में लोकतंत्र का डंका हमने बजाया है।

इसमें बताये नियमों को अपने जीवन में अपनाये,

थाम एक दूसरे का हाथ आगे-आगे कदम बढ़ाये,

आओ तिरंगा लहराये, आओ तिरंगा फहराये,

अपना गणतंत्र दिवस है आया, झूमे, नाचे, खुशी मनाएं।।


होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है

मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है

ज्यादा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गुजारा होता है

बच्चों के लिये जो धरती मां, सदियों से सभी कुछ सहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है


कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं, इंसान को कम पहचानते हैं

ये पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं

मिल जुल के रहो और प्यार करो, एक चीज यही जो रहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है


जो जिससे मिला सिखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने

मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को नही पूजा हमने

अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है

हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं

जिस देश में गंगा बहती है..

- शैलेन्द्र

*****


मेरे देश की आंखें

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं

पुते गालों के ऊपर

नकली भवों के नीचे

छाया प्यार के छलावे बिछाती

मुकुर से उठाई हुई

मुस्कान मुस्कुराती

ये आंखें

नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं...

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तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से

शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं...

वन डालियों के बीच से

चौंकी अनपहचानी

कभी झांकती हैं

वे आंखें,

मेरे देश की आंखें,

खेतों के पार

मेड़ की लीक धारे

क्षिति-रेखा को खोजती

सूनी कभी ताकती हैं

वे आंखें...


उसने झुकी कमर सीधी की

माथे से पसीना पोछा

डलिया हाथ से छोड़ी

और उड़ी धूल के बादल के

बीच में से झलमलाते

जाड़ों की अमावस में से

मैले चांद-चेहरे सुकचाते

में टंकी थकी पलकें उठाईं

और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं

मेरे देश की आंखें...

- अज्ञेय

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जब देश को खतरा हो गद्दारों से

तो गद्दारों को धरती से मिटाना जरूरी है

जब गुमराह हो रहा हो युवा देश का

तो उसे सही राह दिखाना जरूरी है


जब हर ओर फैल गई हो निराशा देश में

तो क्रांति का बिगुल बजाना जरूरी है

जब नारी खुद को असहाय पाए

तो उसे लक्ष्मीबाई बनाना जरूरी है


जब नेताओं के हाथ में सुरक्षित न रहे देश

तो फिर सुभाष का आना जरूरी है

जब सीधे तरीकों से देश न बदले

तब विद्रोह जरूरी है।।

जय हिंद, जय भारत।।

*****

अमर वो उनकी बलिदानी याद रहे

सालों तक न हो बात पुरानी

आजाद हिन्द का तिरंगा रहे हमेशा ऊंचा

खुशनसीब है हम जो यहां जन्म लिए

यहां की मीट्टी की खुशबू

यहां की हवाओं का अपनापन

हर दिल में राष्टगान का सम्मान रहे


अगर झुकने लगे जो तिरंगा

तो हम बलिदान कर दे खुद को

सर कटा दे पर सर झुका सकते नहीं


हिन्दुस्तान है सोने की चिड़ियां

ईसाई ,सिख, हिन्दू हो या मुस्लिम हम जो भी हो

हम जहां भी रहे

सिर्फ हिन्दुस्तानी रहें

अमर वो उनकी बलिदानी याद रहे।।

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ये थी कुछ गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी के लिए कवितायेँ। इन्हे इंटरनेट से चुन कर आपके लिए लाया गया है। यहाँ दी गयी रिपब्लिक डे पर कविताओं का इस्तेमाल आप अपने स्कूल कॉलेज में गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी के दिन कर सकते हैं। हमारी ओर से आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। वंदे मातरम्।

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